
आमतौर पर ज्यादातर बच्चे 2-3 साल की उम्र तक बोलने लगते हैं जबकि कुछ बच्चे 8-10 साल की उम्र तक तुतला कर बोलते हैं। दरअसल सभी बच्चों की मानसिक क्षमता अलग-अलग होती है इसलिए कुछ बच्चों को साफ-साफ बोलने में ज्यादा समय लगता है। अगर बच्चा देर से बोलना शुर
आमतौर पर ज्यादातर बच्चे 2-3 साल की उम्र तक बोलने लगते हैं जबकि कुछ बच्चे 8-10 साल की उम्र तक तुतला कर बोलते हैं। दरअसल सभी बच्चों की मानसिक क्षमता अलग-अलग होती है इसलिए कुछ बच्चों को साफ-साफ बोलने में ज्यादा समय लगता है। अगर बच्चा देर से बोलना शुरू करे, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वो दिमागी रूप से कमजोर है। अगर बच्चा 4-5 साल की उम्र के बाद भी तुतलाता है, तो मां-बाप अक्सर घबरा जाते हैं। लेकिन ये घबराने की बात नहीं है।
बच्चों के हकलाने का कारण
- कई शोधों में ऐसा पाया गया है कि जो बच्चे जन्म के बाद पहले 6 महीने ज्यादा नहीं रोते हैं या खास जरूरत और कष्ट होने पर ही रोते हैं, उनमें भविष्य में हकलाने की सम्भावना ज्यादा होती है। हालांकि यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि बच्चा हकलाएगा ही क्योंकि कुछ बच्चे देर से सीखते हैं।
- ऐसा भी देखा गया है कि प्रेग्नेंसी के दौरान जिन महिलाओं को पीलिया (जॉन्डिस) की समस्या होती है, उनके बच्चों में हकलाने के मामले ज्यादा पाए जाते हैं।
- कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान मां को पेट में लगने वाले झटके, चोट या किसी दबाव के कारण भी बच्चे की सुनने, बोलने और देखने की क्षमता प्रभावित होती है। ऐसे बच्चों में एक साथ देखने, सुनने और बोलने की समस्या भी हो सकती है या इनमें से कोई एक समस्या भी हो सकती है।
मां बच्चे से ज्यादा बात करे तो जल्दी बोलते हैं बच्चे
हम सभी के मस्तिष्क में ढेर सारी सेल्स (कोशिकाएं) होती हैं। इन सेल्स के आपस में कनेक्शन के कारण हमारी बोलने, सोचने और समझने की प्रक्रिया एक साथ चलती है। ब्रेन सेल कनेक्शन्स को सिनैप्सिस भी कहते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि जब बच्चा 7-8 महीने का हो जाता है तब उसके मस्तिष्क में लगभग 1000 ट्रिलियन ब्रेन सेल कनेक्शन्स बन चुके होते हैं।
आपको यह जानकर और हैरानी होगी कि जिन कनेक्शन्स का बच्चा कोई इस्तेमाल नहीं करता है, वो धीरे-धीरे खत्म होते जाते हैं। यही कारण है कि जो मांएं अपने बच्चे को दुलारती हैं और बहुत ज्यादा बातें करती हैं, उनके बच्चे जल्दी बोलना सीख जाते हैं क्योंकि बच्चे मस्तिष्क में बनने वाले ब्रेन सेल्स कनेक्शन्स का इस्तेमाल करने लगते हैं। यह भी आश्चर्यजनक है कि 6 महीने का शिशु 17 अलग-अलग प्रकार की ध्वनियों (आवाजों) को पहचान सकता है। इसलिए इस उम्र तक बच्चे अपने मां-बाप और घर के सदस्यों की आवाजों को पहचानने लगते हैं।
कैसे दूर करें हकलाने की समस्या
हकलाने के इस परेशानी का इलाज किसी दवा से नहीं, बल्कि स्पीच थेरेपिस्ट और मनोवैज्ञानिक की मदद से किया जा सकता है। सबसे पहले हकलाहट का कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चे के मन में किसी प्रकार का भय हो तो उसे दूर करने की कोशिश करें। बच्चे के मन में आत्मविश्वास पैदा करें और दिमाग से यह बात दूर करने के कोशिश करें कि उसके अंदर किसी प्रकार का दोष है। स्टडी के मुताबिक हकलाने की समस्या दिमाग के स्पीच प्रोसेसिंग क्षेत्र में ब्लड सर्कुलेशन के घटने की वजह से होती है। इसलिए बचपन से ही बच्चों को खेल खेलने और एक्सरसाइज के लिए प्रोत्साहित करें।
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क्या हैं बच्चों में हकलाने के लक्षण
किसी शब्द, वाक्य, पंक्ति को शुरू करने में समस्या, कुछ शब्दों को बोलने से पहले हिचकिचाहट महसूस करना, किसी शब्द, आवाज़ या शब्दांश को दोहराना, वाक्य तेज़ गति से निकलना इत्यादि। बोलते समय तेज़ गति से आँखें भीचना, होठों में कंपकंपाहट, पैरों को ज़मीन पर थपथपाना, जबड़े का हिलना इत्यादि। कुछ आवाज़ निकालने से पहले 'उहं' जैसा विस्मयबोधक शब्द का बार बार इस्तेमाल करना।
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