
भारत में मलेरिया युगों से स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। मलेरिया से न सिर्फ स्वास्थ्य जोखिम होता है बल्कि यह रोग ज्वर, सिरदर्द और फ्लू जैसे अन्य लक्षण पैदा करता है। आइए जानें मलेरिया का इतिहास।
जब भी कोई नई बीमारी जन्म, लेती है तो उसके पीछे कई राज और कारण छिपे होते है। हालांकि सभी कारणों को तलाशना मुश्किल हो जाता है लेकिन किसी भी बीमारी का संक्रमण एक देश से दूसरे देश में फैलता है। मलेरिया विदेशी देशों से संक्रमित होकर भारत पहुंचा है। हालांकि भारत में भी मलेरिया युगों से गंभीर स्वास्थ्य समस्या बना हुआ है। मलेरिया से न सिर्फ स्वास्थ्य जोखिम होता है बल्कि यह रोग ज्वर, सिरदर्द और फ्लू जैसे अन्य लक्षण पैदा करता है। गर्भवती महिलाओं में यह रोग मां तथा भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक है। आइए जानें मलेरिया का इतिहास।
- मलेरिया इंसान को 50,000 वर्षों से प्रभावित कर रहा है। सबसे पहले चीन में 2700 ईसा पूर्व मलेरिया की पहचान की गई। मलेरिया शब्द की उत्पत्ति भी मध्यकालीन इटालियन भाषा के शब्दों माला एरिया से हुई है जिनका अर्थ है 'बुरी हवा'। इसे 'दलदली बुखार' (marsh fever) या 'एग' (ague) भी कहा जाता था क्योंकि यह दलदली क्षेत्रों में अधिक फैलता था।
- मलेरिया की रोकथाम के लिए पहला प्रभावी उपचार सिनकोना वृक्ष की छाल से किया गया था जिसमें कुनैन पाई जाती है। यह वृक्ष पेरू देश में एणडीज पर्वतों की ढलानों पर उगता है। इस छाल का प्रयोग लम्बे समय से मलेरिया के विरूद्ध किया जा रहा था।
- भारत में मलेरिया का इतिहास युगों पुराना है। वास्तव में, मलेरिया एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है। मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है तथा भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या है।
- भारत में मलेरिया संक्रमण 65 फीसदी पी. वैवाक्स परजीवी की वजह से है और 35 फीसदी फाल्सीपेरम पी. के कारण। पी. फाल्सीपेरम मलेरिया के मच्छर वेक्टर की छोटी सी संख्यात भी एक वयक्ति से दूसरे व्यक्ति में तेजी से संक्रमण करती है। पी. फाल्सीपेरम मलेरिया 1969 में जानलेवा मलेरिया के रूप में दर्ज किया गया।
- यदि आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में मलेरिया के करीब 1.87 मिलियन मामले हुए 2003 में दर्ज किए गए जिनमें से करीब 1006 की मृत्यु हो गई। विश्वि में हर साल 40 से 90 करोड़ बुखार के मामलों का कारण मलेरिया ही है। इससे 10 से 30 लाख मौतें हर साल होती हैं, यानी प्रति 30 सैकेण्ड में एक मौत। इनमें से ज्यादातर पाँच वर्ष से कम आयु वाले बच्चें होते हैं, वहीं गर्भवती महिलाएं भी इस रोग की पकड़ में जल्दीँ आ जाती हैं।
- हालांकि भारत में मलेरिया समाप्त होने के कगार पर था लेकिन 1970 के दशक के बाद यह अधिक तीव्रता से लौट आया। वर्तमान में भारत में मलेरिया तथा उसके प्रभाव से उत्पसन्नक अन्य बीमारियां मृत्यु, विकलांगता तथा आर्थिक नुकसान बढ़ गया है।
- छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं में मलेरिया के प्रति प्रतिकार-क्षमता अत्यंत कम होने की वजह से यह माता-मृत्यु, मृत शिशुओं का जन्म, नवजात शिशुओं का वजन अत्यधिक कम होना आदि हो जाते है।
- भारत में मलेरिया सबसे अधिक गरीब क्षेत्रों में बढ़ रहा है हालांकि मलेरिया शहरी क्षेञ भी इससे लगातार प्रभावित हो रहे है लेकिन मलेरिया की करीब आधी घटनाएं उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल में दर्ज की गई है।
- 1953 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (एनएमसीपी) शुरु किया जो घरों के भीतर डीडीटी का छिड़काव करने पर केंद्रीत था। इसके अच्छे प्रभाव देखकर राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम (एनएमईपी) 1958 में शुरु किया गिया। लेकिन 1967 के बाद मच्छरों द्वारा कीटनाशकों के तथा मलेरिया-रोधी दवाओं के प्रति प्रतिकार क्षमता उत्पन्न कर लेने के कारण देश में मलेरिया ने फिर फैलता शुरू कर दिया।
हालांकि आज भी मलेरिया नियंञण के कई कार्यक्रम चलाए जा रहे है लेकिन मलेरिया बुखार अभी भी पूरी तरह से काबू नहीं हो पाया है।
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