भावनायें हर व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, भावनाओं के आधार ही व्यक्ति व्यवहार करता है और उसका असर उसके गुणों पर पड़ता है, इसपर नियंत्रण करके खुद को भावनात्मक रूप से बुद्धिमान बना सकते हैं।
भावनायें ही तो व्यक्ति की प्रवृत्ति का निर्माण करती हैं। भावनाओं को नियंत्रित कर उन्हें सही दिशा देकर जीवन को आनंदमय बनाया जा सकता है। भावनायें जब तक आपके नियंत्रण में हैं, तब तक बहुत अच्छा है, लेकिन जब आप भावनाओं के नियंत्रण में आ जाते हैं, तो समस्या शुरू हो जाती है। अनियंत्रित भावनायें तनाव और अवसाद को जन्म दे सकती हैं। भावनाओं को काबू करके आसानी से तनाव, चिंता और अवसाद पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यही भावनायें आपके व्यक्तिगत और व्यावहारिक जीवन में आपके कौशल को बढ़ाने का काम करती हैं। इसलिए खुद को भावनात्मक रूप से बुद्धिमान बनायें।
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अगर अब तक आपने अपनी भावनाओं को पूरे दिन नजरअंदाज किया है इसका मतलब आप अब तक जीवन के खास और महत्वपूर्ण अनुभवों से दूर रहे हैं। इसलिए एक दिन अपने दिनभर की पूरी घटनाओं को लेकर अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नोट कीजिए। यह देखिये कि आपकी भावनायें कब सक्रिय होती हैं और जब ये सक्रिय होती हैं तब इसका क्या फायदा होता है।
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आपके शरीर की प्रतिक्रियायें और आपकी भावनायें एक-दूसरे से जुदा नहीं हैं। यह ध्यान दीजिए कि जब आप अपनी भावनाओं को आगे लाते हैं तब उस वक्त आपके शरीर की प्रतिक्रिया क्या होती है। अगर आप दुखी होंगे उस वक्त आपकी शरीर की प्रतिक्रिया क्या होती है और सुखी होने पर आप कैसा अनुभव करते हैं। अपनी भावनाओं को शारीरिक प्रतिक्रियाओं के साथ जोड़कर भावनात्मक रूप से बुद्धिमान बन सकते हैं।
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जब आपकी भावनायें प्रबल होती हैं उस वक्त आपका व्यवहार कैसा होता है। जब आपकी भावनायें कमजोर होती हैं उस वक्त आप कैसा व्यवहार करते हैं। इसका खाका तैयार कीजिए। अगर आप क्रोधित हैं तो आपके चेहरे पर गुस्सा तो दिखेगा साथ ही आप ऊंची आवाज में बात करेंगे, अगर आपके चेहरे पर खुशी होगी तो वो भी दिखेगी। तो अपनी भावनाओं के हिसाब से प्रतिक्रिया देने की कोशिश कीजिए।
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अपनी भावनाओं को खुद से आंकना छोड़ दीजिए, क्योंकि आपको अपने अंदर कभी भी कमी नहीं दिखेगी, अगर आपकी भावनायें गलत होंगी तब भी वे आपको अच्छी लगेंगी। अगर आप अपनी भावनाओं को खुद से आंक रहे हैं इसका मतलब आप अपनी कमी को छुपाकर अपनी योग्यता को कम कर रहे हैं। इसका नकारात्मक असर आपकी सकारात्मक सोच पर पड़ता है। इसलिए नकारात्मक भावनाओं से बचने की कोशिश कीजिए।
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किसी बात को सीखने का सबसे अच्छा तरीका होता है इतिहास को खंगालना। अब तक अपने भावनात्मक इतिहास के बारे में विचार कीजिए। यह भी सोचिये कि आपने अपने व्यवहार से अब तक क्या-क्या अनुभव किया है। पिछली बार जब आपकी प्रबल भावनायें थी तब आपने क्या किया था, इस बारे में विचार कीजिए। इसके लिए खुद से सवाल कीजिए कि उस वक्त जो आपने किया क्या वह सही था या गलत था? और अगर गलत था तो उसमें कैसे सुधार किया जा सकता है।
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आप कब क्या सोंचेगे इसपर काबू नहीं पाया जा सकता, क्योंकि परिस्थितियों के हिसाब से ही हमारी भावनायें प्रबल और कमजोर होती हैं। लेकिन उन भावनाओं के आधार पर प्रतिक्रिया देना आपके वश में है। इसलिए जब भी आपके साथ कोई नकारात्मक घटना घटे उस वक्त प्रतिक्रिया देने से बचें, इस दौर में अपनी भावनाओं को काबू करने की कोशिश कीजिए।
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दूसरों के व्यवहार, स्वभाव और प्रतिक्रिया के बारे में सीखें। अगर किसी का व्यवहार आपको अच्छा लग रहा है इसका मतलब है कि वह भावनात्मक रूप से बुद्धिमान है और उसकी प्रतिक्रियाओं पर उसकी भावनायें अधिक हावी नहीं होती हैं। इसलिए दूसरों की बातों को सुनें, सकारात्मक बातों का अनुसरण कीजिए और उसे अपने जीवन में भी लागू करने की कोशिश कीजिये। याद रखिये आपको उससे सीखना है अपना पूरा व्यक्तित्व उस पर नहीं ढालना है।
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सहानुभूति कौशल का मतलब यह है कि आप दूसरों की भावनाओं को काफी हद तक समझते हैं, उनके दुख-सुख के साथी होते हैं। इसलिए दूसरों के प्रति सहानुभति रखना बहुत जरूरी है, यह आपको सकारात्मक सोच की तरफ ले जाती है। खुद को दूसरों के जगह पर रखकर सोचिये, यह सोचिये कि अगर आप उस स्थिति में होते तो क्या करते, उस वक्त आपका व्यवहार कैसा होता।
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विभिन्न प्रकार की भावनायें ही तनाव का कारण बनती हैं। जब कई प्रकार की भावनायें जैसे - घरेलू माहौल, दोस्तों के साथ व्यवहार, करियर की कठिनाइयां आदि जब एक एक साथ शामिल होती हैं तब दिमाग पर जोर पड़ता है और इसके कारण तनाव होता है। इसलिए तनाव पर नियंत्रण पाने की कोशिश कीजिए, उन बातों के बारे में सोचिये जो तनाव के लिए जिम्मेदार हैं।
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आपनी भावनाओं को शब्दों में लिखने की कोशिश कीजिए। 'साइकोलॉजी टूडे' में छपे एक शोध के अनुसार, भावनाओं के बारे में जानने और भावनाओं पर काबू कर खुद को भावनात्मक रूप से बुद्धिमान बनाने के लिए जरूरी है कि अपनी भावनाओं को शब्दों में लिखें। हर रोज एक घंटे अपने विचारों को लिखें और अगर उसमें गलती हो तो उसे दूर करने की कोशिश कीजिए।
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