दूसरी तरह के फोबिया की ही तरह के कमिटमेंट फोबिया से जूझ रहे किसी इंसान को हमेशा ऐसा महसूस होता है कि वह दूसरों से कोई वादा नहीं कर सकता। ऐसे लोगों को किसी भी रिश्ते में बंधने से डर लगता है।
कमिटमेंट फोबिया से जूझ रहे इंसान को हमेशा ऐसा महसूस होता है कि वह दूसरों से कोई वादा नहीं कर सकता। ऐसे लोगों को किसी भी रिश्ते में बंधने से डर लगता है। कमिटमेंट फोबिया भी दूसरी तरह के फोबिया की ही तरह होता है। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें दिमाग हमेशा हमें खुद के द्वारा लिये फैसलों के नतीजों से बचाव के लिए प्रेरित करता है।
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अगर रिश्ते में जरा-सी भी कमी या अनबन नजर आती है, तो बजाय कोई समाधान ढूंढने के, कमिटमेंट फोबिया वाले लोग दूर हो जने को ही अपनी आजादी का आसान रास्ता मानकर रिश्ते तोड़ देते हैं। अपनों का साथ और प्यार का एहसास जिंदगी को खुशगवार बना देता है, और वैसे भी जीवन में थोड़ी बहुत तकरार जरूरी भी है, इसी का नाम जिंदगी है, समय रहते जिंदगी को संभाल लेना ही बेहतर है, वरना गिरने पर थामने वाला नहीं होता और रोने पर रोने के लिये कंधा देने वाला।
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ये एक धोखेबाज़ डर जैसा होता है। फर्ज़ कीजिये कि एक शराबी जो वास्तव में शराब छोड़ना चाहता है लेकिन कमिटमेंट फोबिया वाला पुरुष को यह पता भी नहीं कि उसे पीने की लत है। तो सबसे पहले इस बात को समझने और स्वीकारने की जरूरत होती है।
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अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का फॉर्मूला इन दिनों बड़ा चलन में हैं, और इसमें कोई खराबी भी नहीं है। लेकिन खारबी है बाकी लोगों से कमिटमेंट्स की उम्मीद किए जाने में। क्योंकि ऐसा करने पर यही सुनने को मिलता है कि इट्स माई लाइफ, मुझे अपने ढंग से अपनी जिंदगी जीने की आजादी चाहिए। और ये ही सबसे बड़ी परेशानी है। ये कमिटमेंट फोबिया की निशानी है।
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आज साभी लोग अपनी लाइफ में प्राइवेसी चाहते हैं, यहां तक कि अपने लाइफ पार्टनर से भी। रिलेशनशिप में भी स्पेस जरूरी होता है, लेकिन इस शब्द को अपने गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के लिए बचाव के हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा है, जो समस्या का कारण है। अपने साथी से चंद सवाल करने का मतलब यह लगाया जाता है कि आप उसे स्पेस नहीं दे रहे हैं और उसकी प्राइवेसी से दखलअंदाजी कर रहे हैं। ये कमिटमेंट फोबिया की ही निशानी है।
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एक रिश्ते में पूरी उम्र बिता देने का दौर अब ओल्ड डेटिड सा हो गया है। ऐसे लोगों को अब इमोशनल फूल्स पुकारा जाता है। रिश्तों को बचाने की बात तो दूर, ठीक से पनपने से पहले ही ये बात साफ कर ली जाती है कि जब तक ठीक लगेगा, साथ रहेंगे, वरना अपने अपने रास्ते। जैसा की रिश्तों में प्रैक्टिकल होना आज जरूरी होने लगा है, लोग सोचते है कि आगे बढना है तो प्रैक्टिकल होना जरूरी है, जोकि ये कमिटमेंट फोबिया की पहचान है।।
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कमिटमेंट फोबिया वह स्थिति है, जिसमें इंसान खुद को एक ही चीज से बांध लेता है। इसलिए इससे बचने का सबसे आसान और सही तरीका है, कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे अपने मन के बनाए हुए भ्रम से बाहर निकलने में मदद मिले। इसके लिये सबसे पहले खुद को यह समझाना जरूरी है कि एक बार गलत फैसला होने का मतलब यह नहीं कि हर बार आपको वही अनुभव होगा और अब कोई समाधान नहीं है। आमतौर पर कमिटमेंट फोबिया से बाहर निकलने के लिए विश्वसनीय दोस्तों और रिश्तेदारों से बातचीत की जा सकती है। लेकिन समस्या बड़ी होने पर मनोचिकित्सक से परामर्श लेना ही सही होता है।
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मनोचिकित्सकों के अनुसार सामान्य तौर पर इस तरह के फोबिया को दूर करने का सबसे पहला उपाय, बातों को मन से निकालने का प्रयास होता है। अगर किसी से भी बात करके आपको अच्छा महसूस हो, उससे अपने मन की उलझन जरूर बांटें। लेकिन इससे बचने के लिये सिगरेट और शराब आदि का सहारा न लें, ये समस्या को और ज्यादा बढ़ाते हैं। समस्या ज्यादा बढ़ने पर जब लोग मनोचिकित्सक के पास जाते हैं तो वहां उन्हें काउंसिलिंग और साइकोथैरेपी देकर इस फोबिया से बाहर निकालने की कोशिश की जाती है।
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इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।