अल्सरेटिव कोलाइटिस अर्थात आईबीडी या कहिए व्रणमय बृहदांत्रशोथ आंतो में होने वाली ऑटो इम्यून बीमारी है, इसमें शरीर की प्रतिरोधक क्षमता आंतो के खिलाफ ही एण्टीबॉडी बनाने लगती है।
दरअसल अल्सरेटिव कोलाइटिस अर्थात आईबीडी (व्रणमय बृहदांत्रशोथ) आंतो में होने वाली आटो इम्यून बीमारी है। जिसमें शरीर की प्रतिरोधक क्षमता खुद ही आंतो के खिलाफ एण्टीबॉडी बनाने लगती है। अभी तक इस खतरनाक बीमारी से निपटने के लिए स्टेराइड दवाएं ही इस्तेमाल की जाती रही हैं। लेकिन अब इसके लिए नई दवाओं की खोज हुई है।
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यह रोग मुख्यतः बड़ी आंत और मलाशय की श्लेष्मा झिल्ली के क्षतिग्रस्त होने के कारण होता है। इस रोग में आंतों में घाव हो जाते हैं। इन घावों से रक्तस्राव होता है घाव आंत के अंदरूनी भाग में बड़े या छोटे हो सकते हैं। लेकिन इनके मध्य कोई सामान्य झिल्ली नहीं होती। घाव से तरल, आंव व खून का रिसव होता है जो मल के साथ बाहर निकलता है।
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अल्सरेटिव कोलाइटिस होने पर मरीज को पेट के बाएं निचले हिस्से में दर्द, ऐंठन के साथ दस्त के साथ खून आता है। इसके लक्षण आंत के प्रभावित होने के अनुसार होते हैं। अवशोषण क्षमता के प्रभावित होने से शरीर में जल व खनिज लवणों की कमी हो सकती है। इस रोग के लक्षण बार-बार हो सकते हैं। अधिक समय तक रोगग्रस्त रहने पर बड़ी आंत के कैंसर ग्रसित होने से आशंका बढ़ जाती है।
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दूसरे प्रकार के रोगियों में लगभग 6 से 8 हफ्तों के लिए खूनी दस्त, पेटदर्द, अपच जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। उपचार से रोगी स्वस्थ तो हो जाते है लेकिन कुछ समय के बाद फिर इसके लक्षण उडागर हो सकते हैं और यह चक्र जीवन भर भी चल सकता है।
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तीसरे प्रकार के रोग में लक्षण जैसे पतले दस्त (जिसमे खून, आंव मिला हो सकता है) हो सकते हैं। मवाद और खून मिले मल का रंग काला होता है। इसके अलावा पेट दर्द और तेज मरोड़ हो सकती है। साथ ही हल्का बुखार भी रहता है। अक्सर दीर्घ कालीन रोगी मल त्याग पर काबू नहीं रख पाते हैं।
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कोलाइटिस के कई प्रकार होते हैं। इसका प्रकार रोग से प्रभावित क्षेत्रों या उसके प्रभाव पर निर्भर करता है। अल्सरेटिव प्रोक्टिटिस (proctitis) में सूजन मलाशय तक सीमित होती है। प्रोक्टोसिग्मोडिटिस (Proctosigmoiditis) मलाशय और अवग्रह बृहदान्त्र को प्रभावित करता है। बाईं तरफ के कोलाइटिस में तिल्ली के पास पेट नीचे की ओर मलाशय में सूजन हो जाती है। जबकि पेन-अल्सरेटिव कोलाइटिस पूरे पेट में होता है।
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कोलोन की सर्जरी के बाद भी गर्भावस्था संभव होती है। कई बार कोलोन को दूर करने के लिए सर्जरी आवश्यक हो जाती है। यदि आप गर्भधारण की योजना बना रही हैं, तो एक बृहदांत्र-उच्छेदन (colectomy) के बाद एक इलिओसटॉमी (ileostomy) या जे पाउच के साथ प्रजनन दर कम होनी चाहिए। बेहतर तो यही होगा कि सर्जरी के एक साल बाद तक गर्भधारण के लिए इंतजार किया जाए।
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बेहतर आहार की कमी अल्सरेटिव कोलाइटिस का कारण नहीं होता। अल्सरेटिव कोलाइटिस के बारे में निराशाजनक तथ्यों में से एक यह भी है कि हम इसके कारणों के बारे में ठीक तरह से पता नहीं है। शोधकर्ताओं का मानना है कि कई कारकों के एक साथ आने से प्रतिरक्षा प्रणाली, आंतों पर हमला करती है। वहीं आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारण अल्सरेटिव कोलाइटिस के विकास में सहायक बन जाते हैं। लेकिन भोजन इसका कारण नहीं होता।
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