
गर्भकालीन मधुमेह के लक्षण और इसके निदान को जानें। बस कुछ जांच और सावधानियां कर सकती हैं इस समस्या से बचाव व निदान।
गर्भकालीन मधुमेह गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्या है, यह समस्या अधिक उनको ज्यादा होती है जिनका वजन ज्यादा होता है और गर्भावधि मधुमेह में रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है।
गर्भकालीन मधुमेह रोग गर्भावस्था में एक अस्थायी रोग माना जाता है, जिसमे गर्भवती महिला का शरीर रक्त शर्करा से जूझने के लिए पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं कर पाता। गर्भावधि मधुमेह बढते हुए भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है। गर्भकाल के प्रारम्भ में मधुमेह बच्चे को कई जन्म दोष जैसे बच्चे मे मानसिक विकार या कोइ ह्रदय रेाग दे सकता है, साथ ही गर्भपात की आशंका भी बढ़ाता है। आमतौर पर लगभग दो से पांच प्रतिशत गर्भवती महिलाएं गर्भाकालीन मधुमेह से ग्रस्त पाइ जा सकती हैं। लेकिन इसकी जाँच गर्भावस्था के चौबीसवें वें व अठ्ठाइसवे सप्ताह के बीच में की जाती है।
शुरूआती लक्षण
1- रक्त में शर्करा की अधिकता।
2- बार-बार पेशाब का आना।
3- मतली या चक्कर का एहसास होना।
4- जल्द थकावट महसूस होना।
5- आंखों की रोशनी का धुंधला होना।
बरतें ये सावधानियां
1- गर्भावस्था के समय, गर्भवती महिला की गर्भाकालीन मधुमेह के लिए जांच होनी चाहिए। जिनकी उम्र पेंतीस वर्ष से अधिक है, या जिनका वजन आवश्यकता से अधिक है उन्हें नियमित जांच करवाते रहना चाहिए। इसके साथ ही जिनके परिवार में मधुमेह का इतिहास है, उन्हें भी जांच करवाते रहना चाहिए।
2- गर्भवता होने से पूर्व अपने डॉक्टर से जरूर मिलें। रक्त जांच से आपका फिजीशियन आपको यह बताएगा कि आप अगले आठ से बारह हफ्तों में डायबिटीज को कितना नियंत्रित कर सकती हैं या ऐसे में गर्भनिरोधक गोलियां लेना सुरक्षित है या नहीं।
3- अन्य मेडिकल जांच भी कराएं जैसे यूरिनेलिसिस, कालेस्ट्राल की जांच, ग्लूकोमा, मोतियाबिंद या रेटिनोपैथी के लिए आंखों की जांच। इस जांच से प्रेगनेंसी के दौरान डॉक्टर समय रहते मधुमेह से सम्बन्धित परेशानियों को सुलझा सकता है। आप अपने फीजिशियन से भी विचार-विमर्श अवश्य करें।
प्रेगनेंसी में खून में शुगर की मात्रा
अगर गर्भावस्था में शुगर की मात्रा अधिक हो जाए, तो उसे नियंत्रित करना जरूरी है। शुगर को नियंत्रित करने के लिए अपने आहार को नियंत्रित करना चाहिए। साथ ही व्यायाम के माध्यम से भी शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है। प्रेगनेंसी के दौरान रक्त में शुगर की मात्रा पर नियंत्रण ज़रूरी है क्योंकि महिलाओं को यह तब तक पता नहीं चलता जबतक कि बच्चा दो से चार हफ्तों का ना हो जाये।
गर्भकालीन मधुमेह से ग्रस्त स्त्रियों को गर्भावस्था के बाद टाइप टू मधुमेह मेलिटस होने का अधिक जोखिम होता है, जबकि उनकी संतान को बचपन का मोटापा औऱ आगे चलकर टाइप टू मधुमेह होने की संभावना होती है। अधिकतर रोगियों का इलाज केवल आहार में बदलाव और व्यायाम से ही कर लिया जाता है, किंतु कुछ लोगों को इंसुलिन के साथ मधुमेह-निरोधी दवाएं भी लेनी पड़ती हैं।
गर्भकालीन मधुमेह के साधारणतः बहुत कम लक्षण होते हैं और इसका निदान अधिकतर गर्भावस्था में जांच के समय किया जाता है। रोग की पहचान के लिए किए जाने वाले परीक्षणों से खून के नमूनों में ग्लूकोज़ के गैर जरूरी बढे हुए स्तर का पता लगता है। लेकिन यह माना जाता है कि गर्भावस्था में उत्पन्न हारमोन स्त्री की इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधकता को बढ़ा देते हैं, जिससे ग्लूकोज-सह्यता में कमी हो जाती है।
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