
हमेशा से धूम्रपान को लंग कैंसर का कारण माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि धूम्रपान न करने वाले भी लंग कैंसर का शिकार हो सकते हैं। जीं हां एक नए अध्ययन से पता चला हे कि कुछ कार्बोहाइड्रेट से भरपूर आहार खाने से बीमारी होने का जोखिम
हमेशा से धूम्रपान को लंग कैंसर का कारण माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि धूम्रपान न करने वाले भी लंग कैंसर का शिकार हो सकते हैं। जीं हां एक नए अध्ययन से पता चला हे कि कुछ कार्बोहाइड्रेट से भरपूर आहार खाने से बीमारी होने का जोखिम बढ़ जाता है।
आहार से भी होता है लंग कैंसर
एक विशेषज्ञ ने इस बात को समझाते हुए कहा कि ये तथाकथित "उच्च ग्लाइसेमिक सूचकांक" कम गुणवत्ता वाले कार्बोहाइड्रेट और परिष्कृत से भरपूर आहार खून में इंसुलिन के उच्च स्तर को गति प्रदान करता है। "हालांकि धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का बहुत बड़ा जोखिम होता है, लेकिन ये सभी प्रकार के फेफड़ों के कैंसर के खतरे का कारण नहीं होता है," वू एक पत्रिका समाचार विज्ञप्ति में कहा। "इस अध्ययन से अतिरिक्त सबूत उपलब्ध कराता है कि आहार स्वतंत्र रूप से, और अन्य जोखिम वाले कारकों के साथ संयुक्त होकर फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ा सकता है।
जीं हां सुबह के नाश्ते में अधिकतर लोग ब्रेड, कॉर्न फ्लेक्स और कई तले-भुने पदार्थों का सेवन करते हैं, लेकिन ये पदार्थ फेफड़ों के कैंसर का रोगी बना सकते हैं। एक नए शोध में इसका खुलासा हुआ है। शोध में पाया गया है कि वाइट ब्रेड, कॉर्न फ्लेक्स और तले-भुने चावल जैसे ग्लाइसेमिक इंडेक्स युक्त भोजन और पेय पदार्थ फेफड़ों के कैंसर के विकास को बढ़ा सकते हैं।
ग्लाइसेमिक सूचकांक और ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) एक संख्या है जो एक विशेष प्रकार के भोजन से संबंधित है। यह व्यक्ति के ब्लड में ग्लूकोज के स्तर पर भोजन के प्रभाव को इंगित करता है। जीआई और फेफड़ों के कैंसर के बीच की कड़ी कुछ विशेष प्रकार के सबग्रुप से जुड़ी होती है। कभी भी धूम्रपान न करने वालों और स्क्वॉमस सेल कार्सिनोमा (एससीसी) फेफड़ों के कैंसर का सबग्रुप माने जाते हैं! गोरी त्वचा, हल्के रंग के बालों और नीली, हरे, रंग की आंखों वाले लोगों में यह एससीसी विकसित होने का सबसे ज्यादा खतरा होता है।
क्या कहता है शोध
शोधकर्ताओं ने स्टडी में 1,905 रोगियों को शामिल किया था, जिन्हें हाल ही में फेफड़ों के कैंसर की शिकायत हुई थी। इसके साथ ही 2 हजार 413 स्वस्थ व्यक्तियों का भी सर्वेक्षण किया गया था। इस दौरान प्रतिभागियों ने अपनी पिछली आहार की आदतों और स्वास्थ्य इतिहास की जानकारी दी। अमेरिकी की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर से इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक जिफेंग वू ने बताया, 'शोध के दौरान प्रतिदिन जीआई युक्त भोजन करने वालों में जीआई भोजन न करने वालों की तुलना में फेफड़ों के कैंसर का 49 प्रतिशत जोखिम देखा गया।'
शोध के निष्कर्ष
चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि कार्बोहाइड्रेट की सीमा मापने वाले ग्लाइसेमिक लोड का फेफड़ों के कैंसर से कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं मिला। शोधार्थियों का कहना है कि तंबाकू और धूम्रपान का सेवन न करने वालों में भी फेफड़ों के कैंसर के लक्षण मिले हैं। इससे पता चलता है कि आहार के कारक भी फेफड़ों के कैंसर जोखिमों से संबंधत हो सकते हैं। कुल मिलाकर, "इस अध्ययन से पता चलता है कि आहार संबंधी गलत आदतें और मोटापा कैंसर के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में योगदान देती हैं।
Image Source : Getty
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