
लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर को इन्वेसिव लोब्यूलर कैंसर भी कहा जाता है, यह ब्रेस्ट के लोब्यूल्स के पास होता है, ब्रेस्ट कैंसर के इस प्रकार के बारे में विस्तार से जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर को इन्वेसिव लोब्यूलर कैंसर भी कहा जाता है। यह कैंसर स्तन के पिण्डिका अर्थात लोब्यूल्स के इर्द-गिर्द होता है। लोब्यूल्स वास्तव में वह अंग विशेष है जहां से दुग्ध का उत्पादन होता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सबसे आम ब्रेस्ट कैंसरों में लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर का दूसरा स्थान है। रिपोर्टों की मानें तो दस फीसदी महिलाएं इस कैंसर से ग्रस्त हैं, जो कि महिलाओं का आसानी से अपने चपेट में ले सकता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर के किसी भी स्टेज से बचने की संभावना बनी रहती है। यह बीमारी सामान्यतः 60 साल की उम्र के बाद ही महिलाओं में देखने को मिलती है। शोधों पर गौर करें तो मेनोपॉज के बाद अकसर हार्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी के चलते महिलाओं को इस बीमारी से बावस्ता होना पड़ता है।
लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण
सभी कैंसरों की तरह लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर के भी कुछ सामान्य लक्षण होते हैं जिन्हें देखकर इसके होने का अंदाजा लगाया जा सकता है। आमतौर पर लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर के 0-4 स्केल तक के स्टेजेज़ होते हैं। इसके स्टेज यानी स्तरों का पता इसके बढ़ते स्केलां से लगाया जाता है। जैसे जैसे ट्यूमर का साइज़ बढ़ता है, स्थिति गंभीरता की ओर अग्रसर होती है। विशेषज्ञों की मानें तो जितनी जल्दी इस बीमारी का पता चलता है, उतनी ही जल्दी इससे निजात पाना आसान होता है। इसके शुरुआती स्तर में कम समस्याएं होती हैं जो कि मरीजों को रिकवर करने के लिए ज्यादा परेशानियां खड़ी नहीं करती।
विशेषज्ञों यह भी कहते हैं कि लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर के लक्ष्ण न सिर्फ इसके स्तरों पर निर्भर करते हैं बल्कि कितने लम्बे समय से बीमारी है, यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है। लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर को पूरी तरह समझने तथा इसके स्तरों को जानने के लिए चिकित्सक प्रत्येक साल मैमोग्राम करवाते हैं। मैमोग्राम, स्तन का एक्स-रे होता है। इससे यह पता लगाना आसान हो जाता है कि बीमारी की स्थिति कितनी गंभीर है। बहरहाल मैमोग्राम सामान्यतः सर्जरी या रेडियेशन थैरेपी के 6 महीने के बाद किया जाता है।
जीवित रहने की संभावना दर
कैंसर यूं तो जानलेवा मानी जाती है। लेकिन लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर के साथ जिंदगी की संभावना जुड़ी हुई है। दरअसल इसका जीवित दर पिछले पांच सालों में जिंदा मरीजों की जनसंख्या से पता लगाया जाता है। सर्वेक्षण इस बात की तस्दीक करते हैं कि इसमें बचे रहने की संभावना होती है। इसलिए इसके मरीजों को जल्द हताश होने की जरूरत नहीं है।
इसका उपचार
सामान्यतः लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर की पहचान करना मुश्किल होता है। यही कारण है कि इसके निदान में भी दिक्कतें आती हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर अभिन्न पैटर्न में फैलता है। लेकिन इस कैंसर के साथ एक अच्छी बात यह जुड़ी है कि अन्य कैंसरों की तुलना मंे इसकी विकास दर कम है। नतीजतन चिकित्सकों को मरीज के मर्ज को पकड़ने का समय मिल जाता है। इसके अलावा ऐसे कई ट्रीटमेंट के विकल्प मौजूद हैं जिनसे पूरी तरह रिकवर होने की संभावना बढ़ जाती है।
ट्रीटमेंट के स्तर
लोब्यूलर ब्रेस्ट कैंसर का ट्रीटमेंट अलग अलग स्तरों पर निर्भर करती है। स्तन में हुए छोटे ट्यूमर जो कि फैले न हों, उन्हें निकाला जा सकता है। दरअसल इसमें सिर्फ ब्रेस्ट टिश्यू निकाले जाते हैं जिसे कि लम्पेक्टोमी कहा जाता है। इसके इतर मेस्टेकटोमी में ब्रेस्ट को ही पूरी तरह रिमूव किय जाता है। सर्जरी करने से पहले सामान्यतः चिकित्सक केमोथैरेपी के विकल्प को चुनते हैं। लम्पेक्टोमी के बाद चिकित्सक रेडियेशन का भी इस्तेमाल करते हैं। इससे यह जाना जाता है कि कैंसर सेल्स पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं या नहीं।
इस चिकित्सकीय ट्रीटमेंट के अलावा मरीजों की जीवनशैली भी इस बीमारी से दूर करने के लिए सहायक मानी जाती है। इसके लिए चिकिस्तकों से ही सलाह लेना आवश्यक होता है।
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