
लिम्फोमा में ध्यान रखने वाली बातें : लिम्फोमा में हाजकिन के शुरूआती दिनों में बचने का सबसे अच्छा इलाज है रेडियेशन थेरेपी। जबकि बीमारी के बढ़ते स्टेजेज़ में रेडियेशन के साथ कीमोथेरेपी दी जाती है। आइए जानें और कौन-क
लिम्फोमा जिसमें हाजकिन और नान हाजकिन दोनों प्रकार शामिल है। इसमें हाजकिन के शुरूआती दिनों में बचने का सबसे अच्छा इलाज है रेडियेशन थेरेपी। जबकि बीमारी के बढ़ते स्टेजेज़ में रेडियेशन के साथ कीमोथेरेपी दी जाती है। वैसे तो बीमारी के शुरूआती दिनों में भी कीमोथेरेपी दी जा सकती है। नान हाजकिन लिम्फोमा की चिकित्सा लिम्फोमा के क्रम पर निर्भर करती है जैसे यह लो, इंटरमीडियेट या हाई है और मरीज़ के स्वास्थ्य पर भी निर्भर करती है।
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बीमारी के शुरूआती दौर में जब बीमारी धीरे–धीरे बढ़ती है लिम्फोमा की चिकित्सा रेडियेशन और कीमोथेरेपी से की जाती है। नहीं तो यह चिकित्सा इस बात पर निर्भर करती है कि यह लक्षण कब उत्पन्न हुए या कितने प्रभावी हैं। शुरूआती दिनों में आक्रामक चिकित्सा के परिणाम बहुत से मरीज़ों में अच्छे सिद्ध नहीं हुए हैं।
कुछ स्थितियों में तो लो ग्रेड लिम्फोमा की सिर्फ निगरानी की जाती है लेकिन तब तक इसकी चिकित्सा नहीं की जाती जब तक कि बीमारी गंभीर ना हो जायें। अगर मरीज़ बीमारी के शुरूआती दौर में होता है तो लो ग्रेड (धीरे–धीरे बढ़ने वाला) लिम्फोमा कुछ लक्षण दर्शाता है या फिर यह बीमारी फैल जाती है और इस स्थिति की चिकित्सा रेडियेशन थेरेपी से की जाती है।
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एडवांस स्टेज, लो ग्रेड लिम्फोमा की चिकित्सा कई तरीके से होती है कीमोथेरेपी, रेडियेशन थेरेपी या बोन मैरो ट्रांसप्लांट। बोन मैरो ट्रांसप्लांट में मरीज़ के बोन मैरो के सेल्स को खत्म कर दिया जाता है और फिर बोन मैरो में कैंसर मुक्त सेल्स को इंजेक्ट किया जाता है।
हायर ग्रेड्स लिम्फोमा के लिए 40 से 50 प्रतिशत स्थितियों में बचाव सम्भव है। इसकी मुख्य चिकित्सा है कीमोथेरेपी। कभी–कभी चिकित्सा के लिए रेडियेशन का भी इस्तेमाल किया जाता है। इन्टरमीडियेट ग्रेड लिम्फोमा की चिकित्सा कीमोथेरेपी के ड्रग्स के संयोजन से होती है।
बीमारी की अधिक एडवांस स्टेज में अधिक मात्रा में कीमोथेरेपी देने की आवश्यकता होती है और सम्भवत: बोन मैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट कराने की आवश्यकता होती है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट में मरीज़ के बोन मैरो के सेल्स को खत्म कर दिया जाता है और फिर बोन मैरो में कैंसर मुक्त सेल्स को इंजेक्ट किया जाता है। स्टेम सेल्स वो अपरिपक्व सेल्स होते हैं जो कि रक्त के सेल्स में बढ़ते हैं। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में मरीज़ के शरीर से स्टेम सेल्स निकाल दिये जाते हैं और उन्हें निकाल कर उनमें से कैंसर के सेल्स को निकाल दिया जाता है।
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बर्किट लिम्फोमा एक हाई डिग्री लिम्फोमा है जिसकी चिकित्सा 80 प्रतिशत केसेज़ में हो जाती है और इसमें कीमोथेरेपी के ड्रग्स का संयोजन दिया जाता है।
अगर वो मरीज़ जिसकी चिकित्सा के लिए इन्टरमीडियेट और हाई ग्रेड लिम्फोमा की चिकित्सा दी गयी है और इसके बाद अगर कैंसर दोबारा हो जाता है तो उस मरीज़ के लिए स्टेम सेल ट्रांस्प्लांट या बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराना होता है।
हाल के क्लीनिकल ट्रायल में रेडियोइम्यूनोथेरेपी की जाती है जिसे कि एडवांस, हाई ग्रेड या लिम्फोमा दोबारा ना होने पायें। इस थेरेपी के दौरान एण्टीबाडीज़ को रेडियो आयोडीन के साथ इंजेक्ट किया जाता है।
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एण्टीबाडीज़ वो प्रोटीन होते हैं जो कि उस प्रतिरक्षा प्रणाली का भाग होता हैं और जो कि कैंसर के सेल्स को प्रभावित करता हैं।
कैंसर के सेल्स को खत्म करने के लिए रेडियेशन भी दिया जाता है। शोधकर्ता दूसरी बायलोजिकल थेरेपी का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं जो कि कैंसर का मुकाबला करने में सक्षम हों।
इम्यूनोथेरेपी
विशेष प्रकार के रासायन जो कि लिम्फोमा सेल्स के ऊपर होते हैं, प्रोटीन जिन्हें कि एण्टीबाडीज़ कहते हैं वो उन रासायनों से प्रभावित होते हैं, उन्हें बनाया जाता है। जब इन एण्टीबाडीज को कुछ प्रकार के लिम्फोमा के साथ मरीज़ को दिया जाता है तो इससे दोनों ही प्रकार के ट्यूमर में सुधार होता है और इससे मरीज़ के जीने की सम्भावना बढ़ जाती है।
जब वो लिम्फ नोड्स जिनमें कि लिम्फोमा सेल्स होते हैं उन्हें पैथलाजिस्ट द्वारा पढ़ा जाता है और इन रासायनों की उपस्थिति के लिए जांच की जाती है।
अगर रासायनों की उपस्थिति पायी जाती है तो बहुत से मरीज़ों को ऐसे में एण्टीबाडीज़ देने की आवश्यकता होती है और इसके लिए मरीज़ की स्थिति को देखते हुए कीमोथेरेपी और रेडियेशन थेरेपी दोनों ही की जा सकती है।
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