
फेफड़े का एडेनोकार्सिनोमा से चिकित्सा : फेफड़े का एडेनोकार्सिनोमा को शीघ्र पहचानकर उचित इलाज करवाना चाहिए क्योंकि देर करने पर वह मरीज के दूसरे अंगों तक फैलने लगता है जैसे लीवर, अधिवृक्क
फेफड़े का एडेनोकार्सिनोमा, फेफड़े के कैंसर का एक सामान्य रूप है जो धूम्रपान करने वालों, न करने वालों, महिलाओं और 45 साल की उम्र के लोगों में होता है। पर यह काफी बड़ी संख्या में वयस्कों को प्रभावित करता है।
फेफड़े का एडेनोकार्सिनोमा आमतौर पर ऊतकों से शुरू होकर फेफड़ों के बाहरी हिस्सों के पास एक लंबे समय के लिए उपस्थित रहता हैं इसलिए इसको शीघ्र पहचानकर उचित इलाज करवाना चाहिए क्योंकि देर करने पर वह मरीज के दूसरे अंगों तक फैलने लगता है जैसे लीवर, अधिवृक्क ग्रंथियां, हड्डियां, और ब्रेन। आइए जानें फेफड़े का एडेनोकार्सिनोमा की चिकित्सा कैसे की जाती हैं।
सभी प्रकार के एनएससीएल कैंसरों के लिये शल्य चिकित्सा सबसे महत्वपूर्ण उपचार है खासकर जब कैंसर सीने तक ही सीमित हो और सीने से बाहर इसके फैलने का कोई भी लक्षण मौजूद न हो। इसमें तीन प्रकार की शल्य चिकित्सा का इस्तेमाल किया जाता है:
- वेज रीसेक्शन — फेफड़े के केवल छोटे से हिस्से का निष्कासन
- लोबेक्टॉमी — फेफड़े के एक खंड का निष्कासन
- न्यूमोनेक्टॉइमी — फेफड़े का पूरा निष्कासन
वीएटीएस (वीडियो- एसिस्टेडड थोरैकोस्कोपी)
इस प्रक्रिया के अंतर्गत, शल्य चिकित्सक सीने में चीरा लगाकर एक लचीली नली को डालता है और फेफड़े के क्षेत्र के आंतरिक एवं वाह्य स्तर की सतह के इर्द-गिर्द की स्थिति का दृष्य परीक्षण विजुअल इंस्पेक्शन करते है और आवश्यकता पड़ने पर असामान्य क्षेत्रों को निकालने के लिये शल्य क्रिया का भी प्रयोग करता है। इसमें लोगों को बड़े आपरेशन की तरह डर नही लगता है, इसे थोरैकोटॉमी भी कहा जाता है।
इन सभी शल्य प्रक्रियाओं में फेफड़े के एक हिस्से या पूरे फेफड़े को निकालने की आवश्यकता पड़ती है। अनेक रोगी वर्षों से धूम्रपान करने के कारण फेफड़े के कार्य में कमी का अनुभव करने लगते हैं, इसलिये यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सर्जिकल रिमूवल के बाद मौजूदा फेफड़े प्रणाली और अनुमानित फेफड़े प्रणाली का पूर्ण परीक्षण कराया जायें।
इस प्रकार की जांच फेफड़े में गैर-कैंसर अनियमितता जैसे एंफीसेमा व क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोंनरी डिजीज के लिये भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। कैंसर के विकास के स्तर के आधार पर शल्य चिकित्सा के पहले अथवा बाद में कीमोथेरेपी और रेडिएशनथेरेपी जैसे उपचार किये जाते हैं। स्टेज का निर्धारण ट्यूमर के आकार तथा उसके विस्तार के आधार पर किया जाता है।
स्टेज 1 से 3 आगे ''ए'' व ''बी'' श्रेणी में विभाजित हो जाता है।
स्टेज 1- इस स्टेज के ट्यूमर का आकार छोटा होता है और यह आस-पास के उतकों अथवा अंगों में नहीं प्रवेश करता है।
स्टेज 2 और स्टेज 3- इस स्तर का ट्यूमर आस-पास के टिश्यू, अंगों एवं लिंफ नोड्स में फैल जाता है।
स्टेज 4- इस स्टेज में ट्यूमर सीने के क्षेत्र से बाहर फैल जाता है।
ऐसे लोग जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान होते हैं और शल्य प्रक्रिया को बर्दाश्त करने में अक्षम होते हैं, वे ट्यूमर को संकुचित करने के लिये रेडिएशन एवं कीमोथेरेपी से उपचार करा सकते हैं। यदि ट्यूमर का विकास तेजी से होने लगता है तो कीमोथेरेपी में इस्तेमाल की जा रही दवाईयां इसके विकास की प्रक्रिया को कम कर देती हैं हालांकि इससे कैंसर ठीक नहीं हो पाता।
रेडिएशन का इस्तेमाल फेफड़े के ऐसे कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसका फैलाव मस्तिष्क, हड्डियों इत्यादि क्षेत्रों मे जाता है तथा दर्द का कारण बन जाता है।
इस चिकित्सा का इस्तेमाल अकेले रेडिएशन से अथवा कीमोथेरेपी के संयोजन के साथ फेफड़े के उस कैंसर में भी किया जा सकता है जो सीने के क्षेत्र में केंद्रित रहता है।
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