
चिकनगुनिया मानसून के मौसम के दौरान होने वाली कुछ बीमारियों में से एक है, जो कि वायरल इन्फैक्शन के कारण होती है। चिकनगुनिया की चपेट में आने वाले व्यक्ति की हड्डियों पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है।
चिकनगुनिया मानसून के मौसम के दौरान होने वाली कुछ बीमारियों में से एक है, जो कि वायरल इन्फैक्शन के कारण होती है। चिकनगुनिया मनुष्यों में वायरस ले जाने वाले मच्छरों के काटने के कारण होती है। इसकी चपेट में आने वाले व्यक्ति की हड्डियों पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है, जिसके कारण व्यक्ति को चलने-फिरने या साधारण काम करने में भी काफी परेशानी होती है। अक्सर चिकनगुनिया के ठीक हो जाने के बाद मरीज की हड्डियों में दर्द रहता है और इस कारण उसे कई प्रकार की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। आपको बता दें कि चिकनगुनिया एडिस मच्छर के काटने से फैलती है। इसे पीला ज्वर भी कहा जाता है। चिकनगुनिया का मच्छर साफ पानी में पैदा होता है। ये मच्छर तड़के और शाम के वक्त अक्सर ज्यादा काटते हैं।
चिकनगुनिया बुखार के लक्षण आमतौर पर संक्रमित मच्छर के काटने के 2-4 दिनों के बाद सामने आते हैं। चिकनगुनिया बुखार के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं
- जोड़ों में तेज दर्द।
- स्नायु दर्द।
- तेज बुखार।
- आंखों में रुखापन और जलन।
- खुश्की।
- थकान।
- रैशेज।
- हड्डियों में दर्द।
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बचाव का तरीका
- पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें।
- शरीर के खुले हिस्सों पर क्रीम या रीप्लेंट लगाएं।
- मच्छरदानी लगाकर सोएं।
- कमरे में मच्छर मारने वाला स्प्रे, मैट्स, कॉइल का प्रयोग करें।
जोड़ों में दर्द आम
जोड़ों में दर्द और सूजन वायरस के कारण होता है। धब्बेदार दाने आमतौर पर बीमारी के 2 और 5 दिन के बीच ही सामने आते हैं। यह ज्यादातर धड़ और अन्य अंगों पर होते हैं। कुछ रोगियों को आंख का संक्रमण हो सकता है। साथ ही आंखों से थोडा बहुत खून का रिसाव भी हो सकता है।
लंबे समय तक रहता है असर
लेकिन यह संक्रमण अधिकांश मामलों में प्राणघातक नहीं होता। अधिकांश मरीज कुछ दिनों में स्वस्थ हो जाते हैं। लेकिन, इसका असर लंबे समय तक रह सकता है, जिसमें कई हफ्तों तक थकान रह सकती है। महीनों या वर्षों के लिए जोड़ों में दर्द रह सकता है। इसके साथ ही कुछ अन्य लक्षण भी आपको लंबे समय तक परेशान कर सकते हैं। चिकनगुनिया में डेंगू बुखार से अधिक समय तक जोड़ों में दर्द रहता है। वहीं जैसा डेंगू बुखार के मामलों में रक्तस्रावी मामले देखे जाते हैं वैसा चिकनगुनिया बुखार में नहीं देखा जाता।
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गर्भवती महिलाएं अधिक होती हैं शिकार
अगर कोई गर्भवती महिला चिकनगुनिया बुखार की शिकार होती है, तो आमतौर पर चिकनगुनिया का वायरस उस महिला के भ्रूण तक संक्रमण नहीं फैला पाता। गर्भवती महिलाओं में भी चिकनगुनिया के लक्षण अन्य व्यक्तियों के समान ही होते हैं। वैसे, कई बार जहां चिकनगुनिया और डेंगू दोनों बुखार होते हैं, वहां कई बार इसे डेंगू ही समझ लिया जाता है।
जरूरी है जांच
चिकनगुनिया बुखार और कुछ रोग जो लोगों को भ्रमित करते हैं, वे विभिन्न रक्तस्रावी वायरल बुखार या मलेरिया जैसे रोग हैं। चिकनगुनिया बुखार का निदान सीरम वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर किया जाता है। अप्रत्यक्ष ईम्युनोफ्लुरोसेन्स नए तरह का परीक्षण है जिसे भी चिकनगुनिया बुखार का निदान करने में प्रयोग किया जाने लगा है।
भारत में पहला मामला
भारत में 1824 में बुखार की महामारी, व्यग्रता और गठिया को चिकनगुनिया बुखार के बुनयादी लक्षणों के रूप में दर्ज कर लिया गया था। इसके वायरस को सबसे पहले तंजानिया में 1952-1953 में पाया गया था। तत्पश्चात 1960 से 1982 तक अफ्रीका और एशिया से चिकनगुनिया बुखार के कई प्रकोपों की खबर दर्ज की गई है। चिकुनगुनिया बुखार का पहला प्रकोप, 1963 में कलकत्ता में फैला था। इस महामारी के बाद तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसका प्रकोप फैला था। भारत सहित एशिया में, एडीज एइजिप्ती मुख्य कारक है जो इस बीमारी का संक्रमण फैलाता है।
32 सालों के बाद 2005 में भारत में फिर से चिकुनगुनिया बुखार फैलने की सूचना मिली थी। अक्टूबर 2006 तक भारत के कई राज्य इस बीमारी की चपेट में आ गए थे जिनमें आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, केरल और दिल्ली इत्यादि का नाम उल्लेखनीय है। इन राज्यों के चिकनगुनिया बुखार के मरीजों में जोड़ों का दर्द एवं बुखार के देखने को मिल रहे थे जिनकी जांच के बाद इस बात की पुष्टि होती रही कि वे चिकनगुनिया बुखार से पीड़ित थे।
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